Friday 9 April, 2010

आजादी ! क्या हम काबिल हैं आजादी के ?

 आजादी ! क्या हम काबिल हैं आजादी के ?

देश में आबादी बढ़ रही है. महंगाई बढती जा रही है. रोज़गार के अवसर कम हो रहे है. पढ़े लिखे बहार भाग रहे है. शिक्षा, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में हमारा दयनीय हाल है. जो अमीर है वो और अमीर हो रहा है. जो गरीब है वो और गरीब हो रहा है. किसान खेत खलिहान छोड़ के शहरों की और भाग रहे है. अपराध बढ़ते जा रहे हैं. आम आदमी की तो बिसात ही क्या, आज आंतकवादी बड़ी संख्या में हमारे फोजियों का कत्लेआम बड़े आराम से करते है और हमें खुलेआम हमारे देश के सत्ता को चुनौती देते हैं. पडोसी देश जो हमें अपना दुश्मान मान बता है उसको 2-2 बार हर कर भी हम उसकी दुश्मनी को ख़तम नही कर पाए. क्या कारण है की आजादी के 50 वर्ष बाद भी हम इन मुश्किलों से पार नहीं प् सके. किसी भी देश के लिए ५० वर्ष का वक्फा बहुत होता है. एक बच्चा अपनी पूरी जवानी को भोग कर बूढ़ापे में कदम रख देता है.

क्या कारण है की हम आज तक भी आजादी का मतलब नहीं समझ सके तो इसका सीधा सा मतलब तो ये है की हम आजादी के काबिल कभी थे ही नहीं. और जब किसी अयोग्य आदमी को कुछ ऐसी वस्तु मिल जाये जिसकी समझ उसे हो ही नहीं तो उस वस्तु का विनाश तो होना ही है. और संभव है उस वस्तु से वो अपने आस पास के परिवेश का भी सत्यानाश कर दे.

चलिए थोड़ी चर्चा करते है इस विषय पर की क्या हम आजादी के योग्य थे भी की नहीं ? और कितना समझ पाए है हम आजादी को ?

क्या मायने है हमारे लिए आजादी के ?

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता. कालाबाजारी करने, घूस लेने, येन- प्रकारेन  किसी भी तरह ऊपर पहुँचने की आजादी, इस देश के नियम कानूनों को तोड़ने-मोड़ने की आजादी, निज हित के लिए देश हित को ताक पर रखने की आजादी. 

हाँ, यही तो हम सब कर रहे हैं. और हाँ, गर आपको लगता है की आप इसमें शामिल नहीं हैं तो गलत सोचते है आप. आज स्थिति कुछ ऐसी है की चाहे कोई गरीब हो या आमिर अपनी अपनी सामर्थ्य अनुसार प्रत्येक इंसान आजादी का बेजा इस्तेमाल कर रहा है. यदि आप मुझसे सहमत नहीं हैं तो ज़रा गौर फरमायें -


  1. बिल भरने की लाइन लगी है. क्या आपने कभी सीधे काउंटर पर जाकर (बिना लाइन की परवाह किये) बिल जमा नहीं करवाया ? 
  2. क्या  आपने कभी सड़क पर थूका है या कभी कोई गन्दगी डस्टबिन में न डाल के सड़क पर नहीं फेंकी है ?
  3. क्या आपने कभी रिश्वत नहीं दी है ?
  4. क्या आपने ऐसे नेतायों को नहीं चुना अपने कीमती वोट को व्यर्थ करके जो संसद में जनता की घादे खून पसीने की कमाई को आपस में झगडे करके, संसद की कुर्सियां तोड़ कर, सदन के सभापति के मूह पर फाड़े हुए कागज़ फेंक कर सदन और देश दोनों की गरिमा को तार तार कर देते हैं ?
  5. क्या आपने कभी अपने परिवार की जिम्मेदारियों के अलावा कभी देश के लिए कुछ योगदान दिया है?
उत्तर तो हम जानते ही हैं. चंद विरले ही लोग हैं जो पूरी इमानदारी से प्रथम चार प्रश्नों का उत्तर नहीं में दे पाएंगे और आखिरी का हाँ में.


कमोबेश पुरे देश में यही हाल है. हर कोई व्यस्त है पैसा कूटने में. किसी के पास फुर्सत नहीं अपने समाज और देश में व्याप्त इन खामियों पर विचार करने की. और जब इन पर विचार ही नहीं होगा, तो दूर करने का प्रयास ही कौन करेगा ? आप किसी से पूछिए तो जवाब मिलेगा, में अकेला क्या कर सकता हु? सिस्टम ही ऐसा है. में रिश्वत नहीं दूंगा तो मेरा काम नहीं होगा.  

मै बस इतना ही कहना चाहता हु की ये शब्द सिर्फ कमज़ोर, आलसी या फिर स्वार्थी लोगो के ही हो सकते हैं. जो कुछ करना ही नहीं चाहते. वो ये भी नहीं समझाते की जिस अंधी दौड़ मै हम सब शामिल है, उसका खामयाजा हमारी आने वाली नस्लों को भुगतना होगा.

और ऐसा भी नहीं की इन समस्याओं का कोई हल न हो. हल तो बहुत है. पर जरुर है इच्छाशक्ति की और प्रयास करने की. और शुरुआत तो करनी ही होगी. चाहे आज करे या कल. फैंसला आप पर है. की आप आजादी को पुरे अननद के साथ जी लेना  चाहते है या फिर खुद को अँधेरे मै रख कर इस झूठी आज़ादी पर खुश होते रहना चाहते हैं. 


हल है यक़ीनन है. मेरी आगे आने वाले लेखो में, मै समाधान प्रस्तुत करूँगा, जो मुझे लगता है की यदि हम सब उन पर अमल करे तो हम एक स्वच्छ, समानता से भरपूर वातावरण बना पाने मै कामयाब होंगे जो हमारे देशवासियों और देश दोनों के लिए सुखमय साबित हो सकता है. 

यदि आपको लगता है की आपके पास भी उपाय है, तो आईये चर्चा करें और जो योगदान हमसे बन पड़े अपने समाज और देश की तरक्की के लिए, उसे करें. एक प्रसिद्ध लेखक ने लिखा है की अगर आपके पास समाधान नहीं है, तो जान लीजिये की आप समस्या का एक अंग है.
जल्द ही फिर आयूंगा. अच लगे तो टिपण्णी दीजिये और न अच्छे लगे तो टिपण्णी जरुर दीजिये.

राज