Thursday 8 April, 2010

हमारे अधिकार.. हाँ चूँकि कर्तव्य तो हमें अब याद ही नहीं...

हमारे अधिकार.. हाँ चूँकि कर्तव्य तो हमें अब याद ही नहीं...

तो हाज़िर हैं हम फिर से कुछ अनकहे सीने मै उफनते जज़्बात लेकर.

आज चर्चा करेंगे कर्तव्यों की, क्योंकि अधिकारों की बात तो हर कोई करता फिरता है.

दोस्तों, आज हमारे समाज और देश में जो अफरा तफरी का माहौल है, उसके लिए हम ज्यादातर  अपने देश की  राजनितिक प्रणाली को दोष देते है. लेकिन हम भूल जाते हैं की हम भी उसी प्रणाली का एक हिस्सा हैं. और जिस तरह एक मशीन अपने विभिन्न हिस्सों की मदद से सुचारू रूप से कार्य करती है, बिलकुल उसी प्रकार किसी भी देश का राजनैतिक तंत्र कार्य करता है.

आज हम हर प्रकार का दोष राजनैतिक प्रणाली, नेतायों, राजकीय अधिकारीयों पर दाल कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर डालते हैं.  पर किया इतना आसान है अपने जिम्मेदारियों से भागना?  क्या इस प्रकार कभी हम तरक्की कर पाएंगे. कदापि नहीं. कम से कम जब तक किसी भी राष्ट्र के नागरिक अपने कर्तव्यों का भली-भांति निर्वहन नहीं करेंगे तब तक तो ऐसा मुमकिन नहीं.

हमारी लाचारी तो देखिये, हम इस कदर स्वार्थी हो गायें है की हमें अपने संविधान में प्रद्दत शक्तियों की तो जानकारी है (ये अलग बात है की कुछ लोग इनके बारे में अभी भी नहीं जानते) लेकिन संविधान में उल्लेखित हमारे  कर्तव्य की बात कोई नहीं करता.

जब तक हम नहीं सुधरेंगे, हालात सुधर जाने की सोचना भी बेमानी होगा.

कुछ ऐसा भी नहीं हैं की हमारे देश का संविधान हमसे बहुत बड़े कर्त्य निर्वान की मांग करता हो.  हमें बस इतना करना है की हम अपनी दैनिक दिनचर्या पर थोडा ध्यान दे. और यदि आप ऐसा करेंगे तो पाएंगे की हम सच में ही दिन भर में कितनी गलतियाँ करते जाते है, देखते हुए, जानते हुए, फिर भी हमारा अंतर्मन हमें कटोचता नहीं.

उदाहरण के लिए जरा गौर फरमाइए -

आप अपने वहां में चलते हुए लाल बत्ती पर रुकते हैं. लेकिन रुकते रुकते भी आप पैदल गमन करने वालों का अधिकार छीन लेते हैं.  कैसे ? ज़रा गौर फरमाईये क्या हम हमेशा अपनी गाडी जेब्रा क्रासिंग पर नहीं रोकते ? किया पीली बत्ती होते ही हम अपनी गाडी के एकास्लारेटर (रफ़्तार बढायु दंडिका) पर नहीं पिल पड़ते, ये देखे बिना, की हो सकता है दूसरी तरफ से कोई चला आ रहा हो ?

ये तो मात्र एक उदाहरण है. न जाने कितने कार्य हम रोजाना ऐसे करते हैं, जिनकी हम पढ़े-लिखे अनपढ़ों से अपेक्षा नहीं की जाती. दिन भर में बात बात पर झूठ बोलना, समय व्यर्थ करना, जिसेकी ज्ञानी लोगो द्वारा धन से तुलना की गई है, दुसरो की उन्नति से द्वेष रखना, आँखों के सामने घटी दुर्घटना को देख कर भी आंगे मूँद कर वहां से कन्नी काट लेना इत्यादि कितनी ही बातें है. इन सब का दोष किसे देंगे हम ?

खेर. जरुरत है परिवर्तन की, और परिवर्तन हमेशा भीतर से शुरू होता है. जब हमारा ह्रदय परिवर्तन होगा, तभी हम अपने समाज और राष्ट्र के लिए कुछ कर पाएंगे.

तो चलिए बढ़ते हैं अपने अगले सफ़र की और. आपकी प्रेरक टिप्पणियों का इन्तजार रहेगा. और हाँ आलोचनात्मक टिप्पणियों का खुले दिल से स्वागत है.

राज

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