Saturday, 6 November 2010

Tuesday, 13 April 2010

समाधान

चलिए खोजते है कुछ समाधान हमारे समाज मै व्याप्त खामियों का...

यह तो हम सब जानते हैं की अधिकतर सरकारी नौकरियों जिनका संबध सीधे सीधे आम जन से होता है, मै नोकरी ज्वाइन करते ही एक शपथ दिलाई जाती है. शपथ के शब्द पद और विभाग अनुसार अलग अलग हो सकते है पर उसके मूल मै एक ही भावना होती है, की पद ग्रहण करने वाला अधिकारी, कर्मचारी अपने पद की गरिमा अनुसार कार्य करेगा. वह अपने देश के जनता के हित अनुसार फैंसले लेगा और कोई भी ऐसा कार्य नहीं करेगा जो देशहित या लोकहित मै न हो.

फिर भी क्या कारण है की हमें रोजाना समाचारपत्रों मै विभीन्न किस्म के भ्रष्टाचार संबधी समाचार पढने को मिलते है. 

क्या कारण है की जब लोग सरकारी जॉब ज्वाइन करते है तब उनमे एक जोश और एक जज्बा होता है कुछ कर दिखाने का, दुनिया को बदल देने का. पर वक़्त बीतने के साथ सात वो जोश, वो जज्बा ख़तम सा हो जाता है. वो शपथ भुला दी जाती है और फिर वो खुद भी उसी भ्रष्ट तंत्र का एक हिस्सा बन जाता है बहुत ही धीरे धीरे और खामोशि के साथ की उसके अंतर्मन को भी एहसास नहीं हो पाता इस बदलाव का.

एक हल है इसका, जिसके इस्तेमाल से इमानदार लोगो को हम इस भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बन ने से रोक पाए.

एक सरल उपाय -
जब कोई भी व्यक्ति सरकारी नौकरी ज्वाइन करे, उसे ज्वाइन करने से पहले, समाज मै व्याप्त खामियों पर लिखने को कहा जाये. अगले दो आलो मै अपने पद/विभाग से संबधित खामियों को वो किस प्रकार दूर करेगा ये भी लिखने को कहा जाये.  अब भर्ती बोर्ड उसके लिखे को लेमिनेट और फ्रेम करवा कर उसके कार्यालय के बाहर लगवाया जाये (यदि वो अधिकारी है) अन्यथा उसे कर्मचारी की टेबल पर रखने को कहा जाये जिस से की वो खुद अपने बात को रोजाना पढ़े और उसके कार्यालय मै आने वाले लोग भी उसे पढ़े.

एक छोटी सी पहल हो सकती है ये. यदि इसे लागू किया जाये.

अगले समाधान के लिए पढ़ते रहिये.

जल्द ही हाज़िर होऊंगा कुछ नया लेकर.

Raaj

Friday, 9 April 2010

आजादी ! क्या हम काबिल हैं आजादी के ?

 आजादी ! क्या हम काबिल हैं आजादी के ?

देश में आबादी बढ़ रही है. महंगाई बढती जा रही है. रोज़गार के अवसर कम हो रहे है. पढ़े लिखे बहार भाग रहे है. शिक्षा, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में हमारा दयनीय हाल है. जो अमीर है वो और अमीर हो रहा है. जो गरीब है वो और गरीब हो रहा है. किसान खेत खलिहान छोड़ के शहरों की और भाग रहे है. अपराध बढ़ते जा रहे हैं. आम आदमी की तो बिसात ही क्या, आज आंतकवादी बड़ी संख्या में हमारे फोजियों का कत्लेआम बड़े आराम से करते है और हमें खुलेआम हमारे देश के सत्ता को चुनौती देते हैं. पडोसी देश जो हमें अपना दुश्मान मान बता है उसको 2-2 बार हर कर भी हम उसकी दुश्मनी को ख़तम नही कर पाए. क्या कारण है की आजादी के 50 वर्ष बाद भी हम इन मुश्किलों से पार नहीं प् सके. किसी भी देश के लिए ५० वर्ष का वक्फा बहुत होता है. एक बच्चा अपनी पूरी जवानी को भोग कर बूढ़ापे में कदम रख देता है.

क्या कारण है की हम आज तक भी आजादी का मतलब नहीं समझ सके तो इसका सीधा सा मतलब तो ये है की हम आजादी के काबिल कभी थे ही नहीं. और जब किसी अयोग्य आदमी को कुछ ऐसी वस्तु मिल जाये जिसकी समझ उसे हो ही नहीं तो उस वस्तु का विनाश तो होना ही है. और संभव है उस वस्तु से वो अपने आस पास के परिवेश का भी सत्यानाश कर दे.

चलिए थोड़ी चर्चा करते है इस विषय पर की क्या हम आजादी के योग्य थे भी की नहीं ? और कितना समझ पाए है हम आजादी को ?

क्या मायने है हमारे लिए आजादी के ?

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता. कालाबाजारी करने, घूस लेने, येन- प्रकारेन  किसी भी तरह ऊपर पहुँचने की आजादी, इस देश के नियम कानूनों को तोड़ने-मोड़ने की आजादी, निज हित के लिए देश हित को ताक पर रखने की आजादी. 

हाँ, यही तो हम सब कर रहे हैं. और हाँ, गर आपको लगता है की आप इसमें शामिल नहीं हैं तो गलत सोचते है आप. आज स्थिति कुछ ऐसी है की चाहे कोई गरीब हो या आमिर अपनी अपनी सामर्थ्य अनुसार प्रत्येक इंसान आजादी का बेजा इस्तेमाल कर रहा है. यदि आप मुझसे सहमत नहीं हैं तो ज़रा गौर फरमायें -


  1. बिल भरने की लाइन लगी है. क्या आपने कभी सीधे काउंटर पर जाकर (बिना लाइन की परवाह किये) बिल जमा नहीं करवाया ? 
  2. क्या  आपने कभी सड़क पर थूका है या कभी कोई गन्दगी डस्टबिन में न डाल के सड़क पर नहीं फेंकी है ?
  3. क्या आपने कभी रिश्वत नहीं दी है ?
  4. क्या आपने ऐसे नेतायों को नहीं चुना अपने कीमती वोट को व्यर्थ करके जो संसद में जनता की घादे खून पसीने की कमाई को आपस में झगडे करके, संसद की कुर्सियां तोड़ कर, सदन के सभापति के मूह पर फाड़े हुए कागज़ फेंक कर सदन और देश दोनों की गरिमा को तार तार कर देते हैं ?
  5. क्या आपने कभी अपने परिवार की जिम्मेदारियों के अलावा कभी देश के लिए कुछ योगदान दिया है?
उत्तर तो हम जानते ही हैं. चंद विरले ही लोग हैं जो पूरी इमानदारी से प्रथम चार प्रश्नों का उत्तर नहीं में दे पाएंगे और आखिरी का हाँ में.


कमोबेश पुरे देश में यही हाल है. हर कोई व्यस्त है पैसा कूटने में. किसी के पास फुर्सत नहीं अपने समाज और देश में व्याप्त इन खामियों पर विचार करने की. और जब इन पर विचार ही नहीं होगा, तो दूर करने का प्रयास ही कौन करेगा ? आप किसी से पूछिए तो जवाब मिलेगा, में अकेला क्या कर सकता हु? सिस्टम ही ऐसा है. में रिश्वत नहीं दूंगा तो मेरा काम नहीं होगा.  

मै बस इतना ही कहना चाहता हु की ये शब्द सिर्फ कमज़ोर, आलसी या फिर स्वार्थी लोगो के ही हो सकते हैं. जो कुछ करना ही नहीं चाहते. वो ये भी नहीं समझाते की जिस अंधी दौड़ मै हम सब शामिल है, उसका खामयाजा हमारी आने वाली नस्लों को भुगतना होगा.

और ऐसा भी नहीं की इन समस्याओं का कोई हल न हो. हल तो बहुत है. पर जरुर है इच्छाशक्ति की और प्रयास करने की. और शुरुआत तो करनी ही होगी. चाहे आज करे या कल. फैंसला आप पर है. की आप आजादी को पुरे अननद के साथ जी लेना  चाहते है या फिर खुद को अँधेरे मै रख कर इस झूठी आज़ादी पर खुश होते रहना चाहते हैं. 


हल है यक़ीनन है. मेरी आगे आने वाले लेखो में, मै समाधान प्रस्तुत करूँगा, जो मुझे लगता है की यदि हम सब उन पर अमल करे तो हम एक स्वच्छ, समानता से भरपूर वातावरण बना पाने मै कामयाब होंगे जो हमारे देशवासियों और देश दोनों के लिए सुखमय साबित हो सकता है. 

यदि आपको लगता है की आपके पास भी उपाय है, तो आईये चर्चा करें और जो योगदान हमसे बन पड़े अपने समाज और देश की तरक्की के लिए, उसे करें. एक प्रसिद्ध लेखक ने लिखा है की अगर आपके पास समाधान नहीं है, तो जान लीजिये की आप समस्या का एक अंग है.
जल्द ही फिर आयूंगा. अच लगे तो टिपण्णी दीजिये और न अच्छे लगे तो टिपण्णी जरुर दीजिये.

राज

Thursday, 8 April 2010

हमारे अधिकार.. हाँ चूँकि कर्तव्य तो हमें अब याद ही नहीं...

हमारे अधिकार.. हाँ चूँकि कर्तव्य तो हमें अब याद ही नहीं...

तो हाज़िर हैं हम फिर से कुछ अनकहे सीने मै उफनते जज़्बात लेकर.

आज चर्चा करेंगे कर्तव्यों की, क्योंकि अधिकारों की बात तो हर कोई करता फिरता है.

दोस्तों, आज हमारे समाज और देश में जो अफरा तफरी का माहौल है, उसके लिए हम ज्यादातर  अपने देश की  राजनितिक प्रणाली को दोष देते है. लेकिन हम भूल जाते हैं की हम भी उसी प्रणाली का एक हिस्सा हैं. और जिस तरह एक मशीन अपने विभिन्न हिस्सों की मदद से सुचारू रूप से कार्य करती है, बिलकुल उसी प्रकार किसी भी देश का राजनैतिक तंत्र कार्य करता है.

आज हम हर प्रकार का दोष राजनैतिक प्रणाली, नेतायों, राजकीय अधिकारीयों पर दाल कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर डालते हैं.  पर किया इतना आसान है अपने जिम्मेदारियों से भागना?  क्या इस प्रकार कभी हम तरक्की कर पाएंगे. कदापि नहीं. कम से कम जब तक किसी भी राष्ट्र के नागरिक अपने कर्तव्यों का भली-भांति निर्वहन नहीं करेंगे तब तक तो ऐसा मुमकिन नहीं.

हमारी लाचारी तो देखिये, हम इस कदर स्वार्थी हो गायें है की हमें अपने संविधान में प्रद्दत शक्तियों की तो जानकारी है (ये अलग बात है की कुछ लोग इनके बारे में अभी भी नहीं जानते) लेकिन संविधान में उल्लेखित हमारे  कर्तव्य की बात कोई नहीं करता.

जब तक हम नहीं सुधरेंगे, हालात सुधर जाने की सोचना भी बेमानी होगा.

कुछ ऐसा भी नहीं हैं की हमारे देश का संविधान हमसे बहुत बड़े कर्त्य निर्वान की मांग करता हो.  हमें बस इतना करना है की हम अपनी दैनिक दिनचर्या पर थोडा ध्यान दे. और यदि आप ऐसा करेंगे तो पाएंगे की हम सच में ही दिन भर में कितनी गलतियाँ करते जाते है, देखते हुए, जानते हुए, फिर भी हमारा अंतर्मन हमें कटोचता नहीं.

उदाहरण के लिए जरा गौर फरमाइए -

आप अपने वहां में चलते हुए लाल बत्ती पर रुकते हैं. लेकिन रुकते रुकते भी आप पैदल गमन करने वालों का अधिकार छीन लेते हैं.  कैसे ? ज़रा गौर फरमाईये क्या हम हमेशा अपनी गाडी जेब्रा क्रासिंग पर नहीं रोकते ? किया पीली बत्ती होते ही हम अपनी गाडी के एकास्लारेटर (रफ़्तार बढायु दंडिका) पर नहीं पिल पड़ते, ये देखे बिना, की हो सकता है दूसरी तरफ से कोई चला आ रहा हो ?

ये तो मात्र एक उदाहरण है. न जाने कितने कार्य हम रोजाना ऐसे करते हैं, जिनकी हम पढ़े-लिखे अनपढ़ों से अपेक्षा नहीं की जाती. दिन भर में बात बात पर झूठ बोलना, समय व्यर्थ करना, जिसेकी ज्ञानी लोगो द्वारा धन से तुलना की गई है, दुसरो की उन्नति से द्वेष रखना, आँखों के सामने घटी दुर्घटना को देख कर भी आंगे मूँद कर वहां से कन्नी काट लेना इत्यादि कितनी ही बातें है. इन सब का दोष किसे देंगे हम ?

खेर. जरुरत है परिवर्तन की, और परिवर्तन हमेशा भीतर से शुरू होता है. जब हमारा ह्रदय परिवर्तन होगा, तभी हम अपने समाज और राष्ट्र के लिए कुछ कर पाएंगे.

तो चलिए बढ़ते हैं अपने अगले सफ़र की और. आपकी प्रेरक टिप्पणियों का इन्तजार रहेगा. और हाँ आलोचनात्मक टिप्पणियों का खुले दिल से स्वागत है.

राज

Tuesday, 6 April 2010

मेरा संक्षिप्त परिचय

एक छोटी सी कोशिश सोये हुए जज्बातों को...

तो भाई लोगो शुरू कर रहे हैं अपना सफरनामा हम आज से इस हिंदी ब्लॉग्गिंग में... इस उम्मीद से की आप सब लोगो को साथ मिलेगा और मै  अपनी इस कोशिश के ज़रिये अपने और इस देश के जिन्दा लोगो के मरे हुए जज्बातों को सामने रख सकू.

शीर्षक, हो सकता है थोडा अटपटा लगे आप लोगो को पर ये सच्चाई है आज के युग की. अधिकतर लोग जिंदा तो हैं, पर जज़्बात मर चुके हैं. सोचते और हांकते दुनिया भर की बातें है, पर जब करने की बात आती है तो सब कन्नी काट जाते हैं.

अगर आप खुद को मेरी इस परिभाषा मै पाते हैं, तो शर्माईये मत, मै भी आप मै से ही एक हूँ. सोचता बहुत हूँ, लेकिन आज तक, समाज, देश के लिए कुछ किया नहीं. खेर....

आज के लिए बस इतना ही. धीरे धीरे रंग मै आयूंगा. हो सकता है थोड़ी कडवाहट भी निकले.

तो भाई लोगो दिल खोल के स्वागत करो हमारा अपनी ढेर सारी टिप्पणियों से.

राज